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श्री पराशरसंहिता – मन्त्रोपदेशलक्षणम् – प्रथमपटलः

श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम

श्री पराशर संहिता

प्रथमपटलः

श्रीलक्ष्मणादि भाईयों के साथ रत्न सिंहासन पर विराजित श्रीजानकीपति राम को प्रणाम करता हूं | एक बार सुखासन में विराजमान निष्पात तपोमूर्ति पराशर महामुनि से मैत्रेय ने पूछा | हे भगवान योगियों में श्रेष्ठ महामति पराशर! मैं कुछ जानना चाहता हूं, अतः आप मुझ पर कृपा करें | मोहमाया से आच्छन्न आथर्म, असत्य से युक्त दारिद्रय व्याधि से पीडित घोर कलियुग आ चुका है | उस घोर कलियुग में पूर्वजन्म के कर्मवश जो मनुष्य दुःखी हैं, वह अपने कल्यान करने हेतु ख्या उपाय करें | उन दुःख संतप्तों के लिये दयलुओं को ख्या करना चाहिये! राजा जन दस्युकर्म में प्रवृत हुये हैं और साधुजन विपत्तियों से घिरे हैं |

कलियुग के दारिद्र्य एवं व्याधियों से लोग पीडित हैं | इनसे छुटकारा पाने के ख्या उपाय है | किसका जप करें जिनसे दुःखों पर विजय प्राप्त हो | संसार से तारने वाला कौन है | कौन लैकिक भोग, स्वर्ग एवं मोक्ष देने वाला है | किस वुपास से तुरन्त दुःख सागर कर सकते हैं | हे कृपानिधि! कौन सा लघु उपाय है जिससे सभी सिध्दियां तुरन्त प्राप्त हो जाये | कृपया मुझे शिष्य समझकर बताये | संसार के उपकार के लिये आपने यह पूछा है| यह घोर कलियुग अथर्म और असत्य से संपृक्त हो गया है | समस्त वेद एवं सास्त्र-पुराण का सारतत्व मैं आपको कहता हूं | आप मनोयोग से सुनें |

तीर्थयात्रा प्रसंग से सरयू तट पर आये हुये हमारे पितामह वशिष्ठ ने मुझे देखकर कृपापूर्वक सध्यः सिद्धि प्रदान करने वाली विध्य का उपदेश मुझे दिया| शैव, वैश्णव, शाक्त, सूर्य, गाणापत्य एवं चन्द्रविध्या शीघ्र फल प्रदान करने वाली नहीं कही गयी हैं | इनका फल बहुत दिनों बाद प्राप्त होता है | लक्ष्मी नाराय़णी विध्या, भवानी शंकरात्मिका विध्या, सीताराम महाविध्या पन्चमुखी हनुमद्विध्या चतुर्थी विध्य कही गयी है | नूसिंह अनुष्टुभविध्या, षष्ठी ब्रह्मास्त्र विध्या, अष्टार्णा मारुति विध्या परा विध्या है |
अपरा विध्या साम्राज्यलक्ष्मी विध्या एव्ं महागणपति विध्या है | महागौरीनाम्नी विध्या, कालिकाविध्या द्वादशी विध्या कही गयी है | ये द्वादशविध्या मन्त्र साम्राज्य कहे गयें हैं | इनमें शीघ्र शिद्धि प्रदान करने वाली है | दक्षिणा कालिका विध्या पुरश्चरण के पश्चात् अनाचार से एक रात्री में चिरसाधना से सिद्धि देने वाली है |

पचास अक्षरों के अनुलोम प्रति-लोम से अष्टमी मारुतिविढ्या शीघ्र सिध्दि देने वाली है | विशेषमाला के द्वारा गुरु को यत्न से संतुष्ट करके बगला परमेष्वरी गुरु की सन्निधि से ग्रहण करके – ब्रह्मास्त्रविध्या की सिद्धि जप से प्राप्त होती है | नृसिंह अनुष्टुभ विध्या शीघ्र सिद्धि देने वाली है |

हे मुनि! गुरुकृपा से पंच्मुखी हनुमद विध्या सभी विध्याओं से शीघ्र सिध्दि देने वाली है | प्राचीन काल मे इसी हनुमद विध्या का जप करके महायोगी अगस्त्य ने अंजलिजल के समान सातों समुद्र को लिया था|
यह सत्य कहता हूं – अर्जुन का विजय सामर्थ्य, भीम का शत्रु मर्दन इसी विध्या का प्रभाव है | शीराम की कृपा से इस विध्या को प्राप्त करके विभीषण ने अचल श्री को प्राप्त कर लंका राज्य में वास करते हैं|
इस विध्या के सदृश अन्य कोई विध्या मेरे मत में नहीं है | इसकी यह प्रशंसा नहीं अपितु सत्य ही है |
इस विध्या से विजय, अत्यधिक सम्मान राजा की अनुकूलता, स्त्री अनुकूल्य तथा स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है |

यह विध्या धर्म्-अर्थ काम-मोक्ष प्रदान करने वाली सभी संकटों को दूर करने वाली एवं शत्रु तथा मित्रों में समान पैदा करने वाली है | वाक्सिध्दि पुत्रसंपत्ति आठों प्रकार का भोग एवं संसार के सभी इच्छित वस्तुवों को प्रदान करने वाली है | इसमें संशय नहीं है | गुरु को संतुष्ट करने से यह विध्या शीघ्र सिद्धि देने वाली होती है | एक अक्षर प्रदान करने वाले को भी जो गुरु नहीं मानता है | निरादर वचन से गुरु आञा का उल्लंघन करता है, वह कुत्ते की सौ योनि में जाकर चाण्डालत्व को प्राप्त करता है | जलरहित अरण्य में वह ब्रह्मराक्षस बनता है | जो दरिद्र तीन वर्ष तक गुरु की सेवा करता है, वह इस विध्या को प्राप्त कर निःसंदेह सिद्धि को प्राप्त करता है |

यथाशक्ति धनधान्य वस्त्रालंकरणादि से परिवार को प्रसन्न करके गुरु को संतुष्ट करता है | वह उसके सिद्धि को प्राप्त करता है, जिसकी सिद्धि करोडों व्रत से नहीं होती है | भगवान शंकर ने कहा है – गुरु के वचन से मन्त्र-पुरश्चरणादि से सन्तोष प्राप्त होता है |

हे मुनि! मन्त्रोपदेश के समय अंजलिबद्ध होकर गुरु को स्वामी! गुरु महाप्राञ महाविभु! जब तक मैं जीवित रहूं – आपके चरणों की सेवा करूं ऐसी आञा प्रदान करें | ऐसे वचन का उच्चारण करके गुरुदक्षिणा प्रदान करें | मन्त्रों के उपदेश काल में गुरु को अभीष्ट प्रदान करने वाला मानता है, वह विध्या सिद्धि को प्राप्त करता है | जो अन्य कोटि व्रतादि से प्राप्य नहीं है |

108 या 28 बार जप करके शिष्य के शिर पर दाहिना हाथ रखकर – हे मुनि! दाहिने कान से मूलमन्त्र का उच्चारण करें | मन्त्र में पराक्रम का आधान करने हेतु गुरु मन्त्र का जप करें | शुद्ध मन से ऐक सौ आठ बार जप करें | सभी विध्यऔं का यह साधारण क्रम है | विशेष रूप से पन्चमुखी हनुमद विध्या गुरु के संतुष्ट होने पर निश्चय ही साम्राज्य प्रदान करता है | हे महामुनि! हजार फण वाले शेषनाग भी सैकड़ों वर्ष में इसके माहात्म्य को कहने में समर्थ नहीं है |

इस प्रकार से श्रीपरशरसंहिता के पराशर मैत्रेय संवाद में मन्त्र उपदेश लक्षण नामक प्रथम पटल समाप्त हुआ |

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One Comment

  1. Harish Harish August 25, 2014

    ల్ల యోఉ ప్లేఅసే లేత మే క్నోవ థే మన్దిర ఓఫనుమన విథ హిస విఫే (ఇ.ఏ.ుర్యపుత్రి)

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