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श्री पराशरसंहिता – हनुमन्म्ंत्रोध्धारणम् – व्दितीयपटलः

श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम

श्री पराशरसंहिता

हनुमन्म्ंत्रोध्धारणम् (व्दितीयपटलः)

श्री पराशर कहते हैं –
मन्त्रोव्दार को मैं कहता हूं| एकाग्र चित्त से श्रवन करें| जिसके विशिष्ट ज्ञान मात्र से मनुष्य सदैव विजयी होता है|
आदि मे ऊं का उच्चारण करके हरि मर्कट शब्द के बाद मर्कटाय एवं स्वआ का उच्चारण करें| (ऊं हरिमर्क़ट मर्कटाय स्वाहा)

व्दादशाक्षर से युक्तघ मन्त्र कहा गया है| ओंम नमः पंचवदनाय पूर्ववत कपि शब्द से युक्त करें |मुख में सकल शब्द का उच्चारण करके शत्रु संहरण का उच्चारण करें | अनन्तर यकार का उच्चारण करके ह्रों बीज का उच्चारण इस पद का एवं कस्वाहा पद का उच्चारण करें |

तैंतीस वर्णों वाला यह मंत्र का जाता है|दक्षिण की ओर मुख करके ओं नमः पंचवदनाय करालाय नृसिंहाय का उच्चारण करें तदनन्तर क्ष्रों बीज का उच्चारण करें | इन सभी पदों तथा भूतप्रमथनाय का उच्चारण करके स्वाहा पद का उच्चारण करें | यह विध्या कामना सिध्द करने वाली है |

चोंतीस वर्णात्मकघ मंत्र कहा जाता है | पश्चिम की ओर मुख करके ओं नमः पंचवदनाय वीराय गरुडाय कहकर क्ष्र्म्यों इस बीज का उच्चारण करें| इन सभी पदों का उच्चारण करके विषाय इस पद का उच्चारण करें| हराय इस पद का उच्चारण करके अनन्तर स्वाहा पद का उच्चारण करें|

एकतीस वर्णरूपात्मक यह मन्त्र कहा जाता है| उत्तर की ओर मुख करके ओं नमः पंचवदनाय आदि वराहाय पद का उच्चारण करें| तदनन्तर ज्लों बीज कहे | पूर्वोंक्त सभी पदों को कहकर संपत्कराय स्वाहा का उच्चारण करें|

तीस वर्णरूपात्मक यह मन्त्र कहा जाता है | ओं नमः प्ंचवदनाय का उच्चारण करें ऊपर की ओर मुख करके हयग्रीवाय का उच्चारण करें |अनन्तर सर्वोत्कृष्ट अत्यन्त स्हों बीज का उच्चारण करें| सकलाय जनाय यह पद उच्चारित करें|

वशीकरण स्वाहा कहें| आगम के जानकर इसको बत्तीस वर्णात्मक मन्त्र कहते हैं| ओं ह्र्दयाय भगवते कहकर आंजनेयाय शब्द का उच्चारण करें | महाबलाय कह कर हनुमते स्वाहा कहे | यह विध्या कही गयी है | विद्वज्जन इसको तेईस अक्षरों वाला मन्त्र कहते हैं |

हे मुनि! सातों मन्त्र में अक्षरों की संख्या एक सौ छियात्रवे वेदज्ञ विद्वान मानते हैं| पंचमुखी हनुमान जी से सम्बन्धित सप्तमन्त्रात्मिका विध्या कलियुग में पापी जनों एवं मिथ्याचारी को भी प्रत्यक्ष प्रदान करने वाली है | यह महासिंहासनस्था विध्या सभी विध्यायों की मूलाधार है | यह मनुष्य मात्र को दृष्ट – अदृष्टमय फल प्रदान करने वाली है | इसके सदृष तीनों लोकों में दूसरी विध्या दुर्लह है | इस पर तिथि-नक्षत्र, योग-करण का प्रभाव नहीं पडता है |

हे मुनी! न ही  वार दोष और न ही ग्रहण का दोष इस विध्या पर होता है | वेद-शास्त्र-पुराणों में भी इसके श्रेष्ट विध्या का वर्णन नहीं है | शी गुरुमुख के बिना यह विध्या सभी साम्राज्य को प्रदान करने वाली है | जैसे श्रीगुरु की करुणा से श्रीहनुमान की यह विध्या प्राप्त होती है, अतः इस योग को अध्योंधय  योग माना गया है |

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हे महामुनि! मैं भुजा उठाकर कहता हूं – यह सत्य है, सत्य है, पुनः सत्य है जिसके ऊपर गुरु की कृपा है, वह कृतार्थ है | वही संसार में धन्य है, भाग्यवान है चाहे वह दरिद्र, रोगी, अंधा या वामन (बौना) है | गुरु ही परम देवता है | गुरु ही परम तप है | गुर ही परम ध्यान है | पृथ्वी पर गुर से श्रेट कोई नहीं है | इस मन्त्र के ऋषि सदाशिव धन्य अमृतविराट पंचमुखी विराडरूपी शी हनुमान देवता है | ह्रां बीज ह्रीं शक्ति तथा ह्रूं कीलक कहे गये हैं | पश्चात षड दीर्घ सहित मया से षडंग का आचरण करे |

ध्यान – हे अच्यत पंचमुखी विचित्र वीर्य, शंख चक्र धारण किये हुये कपिश्रेष्ट! पीताम्बर मुकुटादि से सुशोभित अंग वाले पिंगाक्ष श्री हनुमान का मन से स्मरण करता हूं |  हे कपिराज! महान उत्साही सभी शोक़ को दूर करने वाले शत्रु का संहार करो, मेरी रक्षा करो | हे अच्युत, हमारे वैभव की रक्षा करो | ऐसा ध्यान करके मन्त्र का जप करें, ऐसे पुरुष की सभी कामना प्रत्यक्ष सिद्ध होती है | यहां किसी प्रकार का संशय नहीं है |

हे मैत्रेय! हे विप्रश्रेष्ठ् सुनो पंचमुखी हनुमान जी का दूसरा मन्त्र कहता हूं, जो गोपनीय एव्ं संसार का उपकार करने वाला है|

प्रारंभ में ऊं का उच्चारण करके तदनन्तर ह्रैं बीज, क्रैं बीज तथा क्ष्रमयैं बीज का उच्चारण करें | तदनन्तर ग्लैं बीज का उच्चारण करके उसके बाद हूसैं बीज तद्नन्तर महाबलाय पद कहकर नमः शब्द जोडें | पंचवदनाय तदनन्तर हनुमते शब्द कहे | खे-खे-हुं-फट कहकर स्वाहा का उच्चारण करें |

हे महामुनि! तीस वर्णों वाला यह सर्वॉत्कृष्ट मंत्र है | इसमें केवल ध्यान पृथक है, अन्य सब पूर्व मंत्र की तरह है |

वानर, नरसिंह, गरुड, सूकर और अश्व मुख से युक्त, नाना आभूषण वाले, पन्द्रह नयन वाले, कान्ति से देदीप्यमान, हाथों में तलवार, खेट, पुस्तक, अमृतघट, कुशपर्वत, हल, खंत्रवांग, सर्प, वृक्ष धारण किये हुए सभी शत्रुओं के गर्व का विनाश करने वाले श्री हनुमान की वन्दना करता हूं |

इस प्रकार श्रीपराशरसंहिता के पराशर मैत्रेय संवाद प्रकरण में पंचमुख हनुमद मन्त्रोव्दार कथन नामक व्दितीय पटल समाप्त हुआ |

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One Comment

  1. vinay vinay July 19, 2012

    very good sir,
    you gave a very good Samhita. इसमें बहुत सुंदर हनुमान उपासना लिखी है
    आपका धन्यवाद

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